‘Sitaare Zameen Par’: ‘नकल’ का टैग या कहानी को देसी रंग देने की कला?

Aamir Khan in Sitaare Zameen Par movie poster – 2025 Bollywood film inspired by Spanish movie Champions

आमिर खान का नाम जब भी किसी फ़िल्म से जुड़ता है, एक अलग ही लेवल की एक्साइटमेंट ऑडिएंसेस में दौड़ जाती है। और अब, उनकी नयी फ़िल्म ‘Sitaare Zameen Par’ का ट्रेलर कल, यानी 13 मई 2025 को रिलीज़ होते ही सोशल मीडिया पर तूफ़ान आ गया है। हर तरफ़ बस इसी के चर्चे हैं। फ़िल्म का टाइटल ‘तारे ज़मीन पर’ की यादों को ताज़ा करता है, लेकिन आमिर ने साफ़ किया है कि यह उसकी सीक्वल नहीं, बल्कि एक “स्पिरिचुअल सक्सेसर” है, जिसका अंदाज़ बिलकुल अलग होगा – यह फ़िल्म रुलाएगी नहीं, हंसाएगी!

आर.एस. प्रसन्ना के डायरेक्शन में बन रही इस फ़िल्म में आमिर के साथ जेनेलिया देशमुख भी इम्पोर्टेन्ट रोल में नज़र आ रही हैं। ट्रेलर देखकर लोगों की उम्मीदें आसमान छू रही हैं, लेकिन एक बात जो सबसे ज़्यादा डिस्कस हो रही है, वह है इस फ़िल्म का कनेक्शन स्पैनिश हिट ‘चैंपियंस’ (2018) से।

जैसे ही ट्रेलर सामने आया, सोशल मीडिया पर “रीमेक” और “कॉपी” जैसे शब्द तेज़ी से फैलने लगे। तो क्या ‘Sitaare Zameen Par’ सच में बस एक विदेशी फ़िल्म की नकल है? या फिर यह आमिर खान का एक और मास्टरस्ट्रोक है, जहाँ वह एक जानी-मानी कहानी को हिंदुस्तानी दिल और देसी अंदाज़ में पेश करने की कोशिश कर रहे हैं? चलिए, इस पर थोड़ी गहरी नज़र डालते हैं।

‘Sitaare Zameen Par’ का स्पैनिश फिल्म ‘चैंपियंस’ से कनेक्शन

आज के डिजिटल ज़माने में, जब दुनिया भर का सिनेमा एक क्लिक पर अवेलेबल है, किसी भी फ़िल्म पर “रीमेक” या “कॉपी” का ठप्पा लगना बहुत आम बात हो गयी है। ‘सितारे ज़मीन पर’ के ट्रेलर के साथ भी कुछ ऐसा ही हुआ। यह सच है कि फ़िल्म की बुनियादी कहानी – एक अनुभवी लेकिन बदनाम कोच का एक ऐसी टीम को ट्रेन करना जिसके खिलाड़ियों में इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटीज़ हैं – स्पैनिश फ़िल्म ‘चैंपियंस‘ से प्रेरणा लेती है, या यूं कहें कि ऑफिशियल तौर पर उसी पर आधारित है।

‘चैंपियंस’ खुद एक बहुत सफल और पसंद की गयी फ़िल्म रही है, जिसकी इमोशनल और हार्टवार्मिंग स्टोरी ने दुनिया भर के दर्शकों का दिल जीता था। इसका एक हॉलीवुड रीमेक भी 2023 में ‘चैंपियंस’ नाम से ही आ चुका है। तो, यह कहना गलत नहीं होगा कि ‘सितारे ज़मीन पर’ एक ऐसी कहानी को इंडियन स्क्रीन पर ला रही है जिसका बेसिक प्लॉट पहले से ही ऑडिएंसेस के एक सेक्शन को पता है।

लेकिन, क्या इतना कह देना काफ़ी है? क्या ऑफिशियल रीमेक करना अपने आप में कोई गलत बात है? बिलकुल नहीं। दुनिया भर में सिनेमा में एक भाषा से दूसरी भाषा में कहानियों का अडाप्ट होना एक बहुत पुरानी और नार्मल प्रैक्टिस रही है। असल सवाल यह उठता है कि अडाप्टेशन कैसे किया गया है – क्या वह बस एक सस्ती नकल है या उसमें कुछ नयापन, कुछ अपनापन डाला गया है।

जब बात आमिर खान की फ़िल्मों की होती है, तो अडाप्टेशंस का कांसेप्ट उनके लिए नया नहीं है। उनके करियर पर नज़र डालें तो कई ऐसी फ़िल्में मिलेंगी जो विदेशी या दूसरी इंडियन फ़िल्मों से इंस्पायर या अडाप्ट की गयी हैं। मसलन, उनकी सुपरहिट फ़िल्म ‘गजनी’ (2008) हॉलीवुड फ़िल्म ‘मेमेंटो’ का अडाप्टेशन थी, जिसे उन्होंने इंडियन ऑडियंस के लिए एक्शन और रोमांस के मसालेदार तड़के के साथ पेश किया था।

हाल ही में आई ‘लाल सिंह चड्ढा’ (2022) क्लासिक हॉलीवुड फ़िल्म ‘फॉरेस्ट गंप’ का ऑफिशियल हिंदी अडाप्टेशन थी। इसके अलावा ‘दिल है कि मानता नहीं’ (1991) भी ‘इट हैपन्ड वन नाईट’ से प्रेरित थी। इनमें से कुछ अडाप्टेशंस बॉक्स ऑफिस पर ज़बरदस्त हिट हुईं और क्रिटिक्स ने भी उन्हें सराहा, तो कुछ को ओरिजिनल से कम्पेयर करते हुए क्रिटिसिज्म का भी सामना करना पड़ा।

लेकिन एक बात आमिर खान की अडाप्टेशंस में अक्सर देखी जाती है – वह सिर्फ़ कहानी को उठाकर पेस्ट नहीं करते, बल्कि उसमें अपना टच, अपनी समझ और इंडियन कॉन्टेक्स्ट को जोड़ने की भरपूर कोशिश करते हैं। उनका ट्रैक रिकॉर्ड दिखाता है कि वह कहानी की रूह को पकड़कर उसे अपने अंदाज़ में पेश करने में विश्वास रखते हैं। इसलिए ‘सितारे ज़मीन पर’ से भी उम्मीद की जा सकती है कि यह सिर्फ़ एक फ्रेम-टू-फ्रेम कॉपी नहीं होगी।

यहीं पर “इंडियनाइज़ेशन” यानी कहानी को देसी रंग में रंगने की कला का रोल सबसे इम्पोर्टेन्ट हो जाता है। फ़िल्म को इंडियनाइज़ करने का मतलब सिर्फ़ डायलॉग्स को हिंदी में ट्रांसलेट करना या कैरेक्टर्स के नाम बदल देना नहीं होता। इससे कहीं ज़्यादा गहरा काम होता है। इसमें सबसे पहले आती है कल्चरल न्यूआंसेस यानी सांस्कृतिक बारीकियां। हर देश, हर समाज का रहन-सहन, सोचने का तरीका, रिश्ते-नाते निभाने का अंदाज़ अलग होता है। एक स्पैनिश या अमेरिकन कॉन्टेक्स्ट में जो बात नार्मल लगे, वह इंडियन कॉन्टेक्स्ट में अजीब या गलत लग सकती है।

इसलिए, डायलॉग्स, ह्यूमर, इमोशनल एक्सप्रेशन, फैमिली डायनामिक्स, और सोसाइटल कॉन्टेक्स्ट को इंडियन ऑडियंस की सेंसिबिलिटीज के हिसाब से बदलना ज़रूरी होता है। अगर ‘Sitaare Zameen Par’ के ट्रेलर की बात करें, तो आमिर खान का कैरेक्टर गुलशन, जो एक “रूड” और “पॉलिटिकली इनकरेक्ट” कोच बताया जा रहा है, उसका गुस्सा, उसकी फ्रस्ट्रेशन, और फिर टीम के साथ उसका जुड़ना – यह सब इंडियन इमोशंस और रिएक्शंस के दायरे में कैसे फिट बैठाया जाता है, यह देखना दिलचस्प होगा।

इसके बाद आता है म्यूजिक और सॉन्ग्स का इंटीग्रेशन। बॉलीवुड फ़िल्मों की एक अलग पहचान उनके गाने होते हैं। शंकर-एहसान-लॉय, जिन्होंने ‘तारे ज़मीन पर’ में भी यादगार म्यूजिक दिया था, वह ‘Sitaare Zameen Par’ के भी म्यूजिक डायरेक्टर हैं। ओरिजिनल ‘चैंपियंस’ में म्यूजिक का रोल अलग तरह का था। लेकिन इंडियन वर्शन में गानों के ज़रिये कहानी को आगे बढ़ाने, इमोशंस को एक्सप्रेस करने, या कैरेक्टर्स के डेवलपमेंट को दिखाने का स्कोप ज़्यादा रहता है। देखना यह है कि फ़िल्म में म्यूजिक का इस्तेमाल कैसे किया जाता है।

फिर आते हैं कैरेक्टर आर्क्स। विदेशी फ़िल्म के कैरेक्टर्स को इंडियन ऑडियंस से कनेक्ट करने के लिए उनके मोटिवेशंस, उनके बैकस्टोरीज़, और उनकी जर्नी को थोड़ा मॉडिफाई करना पड़ सकता है। उनमें ऐसे एलिमेंट्स डालने पड़ सकते हैं जो इंडियन वैल्यूज़ या एक्सपेक्टेशंस से मेल खाते हों। और सबसे ज़रूरी, सोशल कमेंट्री। ‘Sitaare Zameen Par’ का टैगलाइन है “सबका अपना अपना नार्मल।”

यह फ़िल्म इंटेलेक्चुअल डिसेबिलिटीज़ वाले लोगों के प्रति इंक्लूसिविटी और उनकी एबिलिटीज़ पर फोकस करती है। इंडिया में इस मुद्दे पर अवेयरनेस और सेंसिटिविटी का लेवल अलग है। फ़िल्म इस सोशल मैसेज को इंडियन सोसाइटी के स्पेसिफिक चैलेंजेस और रियलिटीज़ के साथ कैसे जोड़ती है, यह उसकी इम्पैक्ट को तय करेगा। क्या फ़िल्म सिर्फ़ एक स्पोर्ट्स ड्रामा होगी या फिर यह समाज में एक पॉजिटिव बदलाव लाने की भी कोशिश करेगी, जैसे ‘तारे ज़मीन पर’ ने डिस्लेक्सिया को लेकर की थी?

तो, ‘Sitaare Zameen Par’ के ट्रेलर और आमिर खान के पास्ट रिकॉर्ड को देखते हुए क्या उम्मीदें लगाई जा सकती हैं? आमिर खान अपनी मेटिकुलसनेस यानी हर चीज़ को बारीकी से करने के लिए जाने जाते हैं। वह कैरेक्टर्स में इमोशनल डेप्थ लाने की कोशिश करते हैं। फ़िल्म में आमिर के अलावा जेनेलिया देशमुख हैं और सबसे ख़ास बात, 10 नये कलाकार हैं जो टीम के मेंबर्स का रोल निभा रहे हैं।

इन नये चेहरों की कहानियों को, उनके स्ट्रगल्स और उनकी जीत को इंडियन कॉन्टेक्स्ट में कैसे बुना जाता है, यह फ़िल्म की असली स्ट्रेंथ साबित हो सकता है। आमिर ने यह भी कहा है कि ‘Sitaare Zameen Par’ लोगों को हंसाएगी। यह अप्रोच ‘चैंपियंस’ के फील-गुड नेचर से मिलती है, और आमिर के परफेक्शनिज्म के साथ मिलकर यह एक इंगेजिंग सिनेमैटिक एक्सपीरियंस दे सकती है। यह फ़िल्म स्पोर्ट्स, इमोशन, ह्यूमर और सोशल मैसेज का एक बैलेंस्ड मिक्सचर हो सकती है, जो आमिर खान की फ़िल्मों की पहचान रही है।

रीमेक्स हमेशा एक दो-धारी तलवार होते हैं। एक तरफ़, उनपर ओरिजिनल से बेहतर या कम से कम उसके बराबर होने का प्रेशर रहता है। उन्हें “ओरिजिनैलिटी की कमी” जैसे आरोपों का भी सामना करना पड़ता है। लेकिन दूसरी तरफ़, रीमेक्स एक मौका भी देते हैं – एक सफल और पसंद की गयी कहानी को एक नयी ऑडियंस तक पहुंचाने का, और उसे एक नये कल्चरल पर्सपेक्टिव में पेश करने का।

‘Sitaare Zameen Par’ की सफलता इस बात पर निर्भर करेगी कि वह कितनी कुशलता से स्पैनिश फ़िल्म की रूह को इंडियन जिस्म में ढाल पाती है। डायरेक्टर आर.एस. प्रसन्ना, जिन्होंने पहले ‘शुभ मंगल सावधान’ जैसी सोशली रेलेवेंट और एंटरटेनिंग फ़िल्म बनायी है, उनके लिए यह एक बड़ा चैलेंज और ओपोर्चुनिटी दोनों है। अगर वह कहानी के कोर इमोशंस को बरक़रार रखते हुए उसे इंडियन ऑडियंस के लिए रिलेटेबल और फ्रेश बना पाते हैं, तो फ़िल्म “कॉपी” के टैग से बहुत आगे निकल सकती है।

अंत में, यह कहना सही होगा कि ‘सितारे ज़मीन पर’ बेशक एक अडाप्टेशन है, लेकिन उसे रिलीज़ से पहले ही “सिर्फ़ एक कॉपी” कहकर ख़ारिज कर देना शायद जल्दबाज़ी होगी। सिनेमा एक आर्ट फॉर्म है जहाँ इंस्पिरेशन और अडाप्टेशन की अपनी जगह है। असली टेस्ट फ़िल्म की रिलीज़ के बाद होगा, जब दर्शक यह तय करेंगे कि आमिर खान और उनकी टीम ने इस कहानी को कितना “अपना” बनाया है, कितना “देसी रंग” दिया है। क्या यह फ़िल्म उनकी उम्मीदों पर खरी उतरती है?

क्या यह ‘चैंपियंस’ की तरह लोगों के दिलों को छू पाती है और एक मीनिंगफुल मैसेज दे पाती है? इन सवालों के जवाब तो 20 जून 2025 को ही मिलेंगे जब फ़िल्म थिएटर में लगेगी। तब तक, ट्रेलर ने जो उमंग और बेचैनी जगाई है, उसे बरक़रार रखते हैं और उम्मीद करते हैं कि आमिर खान एक बार फिर हमें एक यादगार सिनेमैटिक अनुभव देंगे, जो ओरिजिनल होने या ना होने की बहस से ऊपर उठकर, बस एक अच्छी फ़िल्म के तौर पर सराही जाये।

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