Is balochistan independent in 2025? हक़, हक़ीकत और हथियार की विस्फोटक जंग

बलूच महिलाओं का विशाल प्रदर्शन, पारंपरिक पहनावे में मुट्ठी उठाए, 'Free Balochistan' और 'Stop Enforced Disappearances' पोस्टर के साथ

भारत और पाकिस्तान के विभाजन (1947) से लेकर आज तक बलूचिस्तान (Balochistan) सुर्खियों में रहा है। क्या बलूचिस्तान आज़ाद है? इस सवाल का जवाब तलाशते हुए हम इतिहास, संविधान, स्वतंत्रता आंदोलन, हालिया घटनाक्रम, मानवाधिकार स्थिति, अंतरराष्ट्रीय प्रतिक्रिया तथा सोशल मीडिया ट्रेंड्स पर विचार करेंगे। चलिए क्रमवार इन पहलुओं को समझते हैं।

बलूचिस्तान (Balochistan) का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य (विभाजन से अब तक)

1947 में ब्रिटिश राज से आज़ादी के वक्त बलूचिस्तान की स्थिति दूसरी रियासतों से अलग थी। तत्कालीन ख़ान ऑफ़ कलात (मीर अहमद यार ख़ान) ने 11 अगस्त 1947 को बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा की। बलूचिस्तान की पार्लियामेंट ने दिसंबर 1947 से लेकर फरवरी 1948 तक कई बार पाकिस्तान में विलय का प्रस्ताव ख़ारिज किया। शुरुआती दिनों में पाकिस्तान ने बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राज्य के रूप में मान्यता देने का समझौता भी किया था, लेकिन कुछ ही महीनों बाद हालात बदल गए।

मार्च 1948 में पाकिस्तानी सेना ने बलूचिस्तान (कलात रियासत) में प्रवेश किया और 27 मार्च 1948 को बलपूर्वक विलय करा लिया। बलूच नेताओं का मानना है कि यह विलय अवैध और ज़बरदस्ती था, क्योंकि बलूच संसद ने स्वतंत्र रहने का निर्णय किया था। इस जबरन अधिग्रहण से बलूच जनता में गहरा आक्रोश पैदा हुआ, जो आज तक पूरी तरह शांत नहीं हुआ है।

बलूचिस्तान (Balochistan) के इतिहास की एक कड़ी लगातार विद्रोह और संघर्ष रही है। 1948 में विलय के तुरंत बाद ख़ान के भाई प्रिंस अब्दुल करीम ने पाकिस्तानी हुकूमत के ख़िलाफ़ पहला सशस्त्र विद्रोह छेड़ा। इसके बाद 1958, 1962, 1973-77 में भी बड़े पैमाने पर बलूच बगावत हुई। हर नए विद्रोह ने पिछले से लंबा समय लिया और अधिक व्यापक समर्थन पाया। विशेषकर 1970 के दशक का विद्रोह (जब ज़ुल्फ़िकार अली भुट्टो सरकार ने बलूचिस्तान की चुनी हुई सरकार बर्खास्त की) बहुत गंभीर था और इसमें हज़ारों लोग मारे गए।

2000 के दशक में एक बार फिर संघर्ष भड़क उठा – 2006 में बलूच नेता नवाब अकबर बुगती एक सैन्य अभियान में मारे गए, जिसने आंदोलन को और तेज़ कर दिया। 2005 से जारी हालिया विद्रोह पिछले सभी चरणों से अधिक लंबा, व्यापक और तीव्र माना जाता है। कुल मिलाकर, इतिहास गवाह है कि बलूचिस्तान 1948 से लेकर आज तक कई बार आज़ादी या स्वायत्तता के लिए संघर्ष करता आया है।

बलूचिस्तान: पाकिस्तान का हिस्सा या आज़ाद देश?

मानचित्र में लाल रंग से दर्शाया गया बलूचिस्तान, पाकिस्तान के चार प्रांतों में से एक है (अन्य तीन प्रांत हरे रंग में दर्शाए गए हैं)। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान को पाकिस्तान के हिस्से के रूप में ही मान्यता प्राप्त है।
मानचित्र में लाल रंग से दर्शाया गया बलूचिस्तान (Balochistan), पाकिस्तान के चार प्रांतों में से एक है। अंतरराष्ट्रीय स्तर पर बलूचिस्तान को पाकिस्तान के हिस्से के रूप में ही मान्यता प्राप्त है।

सबसे पहले यह स्पष्ट कर देना ज़रूरी है कि बलूचिस्तान (Balochistan) कानूनी तौर पर पाकिस्तान का हिस्सा है, न कि एक स्वतंत्र देश। पाकिस्तान के वर्तमान संविधान (1973) के तहत बलूचिस्तान पाकिस्तान का सबसे बड़ा प्रांत है, जो देश के कुल क्षेत्रफल का 44% हिस्सा कवर करता है। आबादी के मामले में यह करीब 1.3 करोड़ (देश की लगभग 7% जनसंख्या) लोगों का घर है, जिसमें मुख्यतः बलोच समुदाय बसता है और साथ ही significant संख्या में पश्तून और ब्राहुई आबादी भी है। बलूचिस्तान की राजधानी क्वेटा है।

अंतरराष्ट्रीय मान्यता की दृष्टि से भी बलूचिस्तान पाकिस्तान का अभिन्न अंग है। संयुक्त राष्ट्र सहित कोई भी देश बलूचिस्तान को एक स्वतंत्र राष्ट्र के रूप में मान्यता नहीं देता। विश्व मानचित्र पर बलूचिस्तान पाकिस्तान के दक्षिण-पश्चिमी क्षेत्र में दिखाया जाता है, जिसकी सीमाएँ ईरान और अफ़ग़ानिस्तान से मिलती हैं। मतलब, यदि आप गूगल पर पूछें “is Balochistan independent”, तो सीधा जवाब होगा – नहीं, बलूचिस्तान आज की तारीख में एक स्वतंत्र राष्ट्र नहीं है, बल्कि पाकिस्तान का एक प्रांत है।

हालांकि, कहानी यहीं ख़त्म नहीं होती। बलूचिस्तान में कई लोग और समूह हैं जो इसे पाकिस्तान के कब्ज़े वाला क्षेत्र मानते हैं और आज़ादी या कम-से-कम अधिक स्वायत्तता की मांग करते हैं। बलूच राष्ट्रवादी अक्सर “पाकिस्तान अधिकृत बलूचिस्तान” शब्द का प्रयोग करते हैं, जैसे कश्मीर के सन्दर्भ में “POK” कहा जाता है। लेकिन कानूनी व कूटनीतिक हकीकत यही है कि बलूचिस्तान पर पाकिस्तान की संप्रभुता स्थापित है।

बलूच स्वतंत्रता आंदोलन और प्रमुख शख्सियतें (मीर यार बलूच आदि)

बलूचिस्तान में स्वतंत्रता (या स्वायत्तता) के आंदोलन की जड़ें गहरी हैं और समय के साथ कई नेताओं ने इसे अपनी आवाज़ दी है। शुरुआती बगावत से लेकर आज के आधुनिक सोशल मीडिया अभियानों तक, कुछ प्रमुख नाम और चेहरे रहे हैं जिन्होंने बलूच संघर्ष को नेतृत्व प्रदान किया है:

मीर यार बलूच – एक युवा बलूच लेखक और कार्यकर्ता, जो हाल के दौर में आंदोलन का नया चेहरा बनकर उभरे हैं। जनवरी 2023 में ट्विटर (अब X) से जुड़े मीर यार बलूच ने सोशल मीडिया के ज़रिए बलूचिस्तान की आज़ादी का संदेश जोर-शोर से उठाया। मई 2025 में उन्होंने ऑनलाइन मंचों पर बलूचिस्तान की स्वतंत्रता की घोषणा करते हुए भारत में बलूचिस्तान का दूतावास खोलने की मांग की और संयुक्त राष्ट्र से शांति सेना भेजने की अपील की।

मीर यार बलूच ने दावा किया कि बलूच जनता ने अपना “राष्ट्रीय फ़ैसला” सुना दिया है कि “बलूचिस्तान पाकिस्तान नहीं है” और दुनिया अब मूकदर्शक न बनी रहे। उन्होंने भारतीयों से अनुरोध किया कि बलूच लोगों को “पाकिस्तान की अपनी जनता” कहना बंद करें – “हम पाकिस्तानी नहीं, बलूचिस्तानी हैं” उनका कहना है। वर्तमान बलूच आंदोलन में मीर यार बलूच सोशल मीडिया पर सबसे चर्चित और प्रभावशाली आवाज़ों में से एक हैं।

नवाब अकबर बुगती – बलूचिस्तान के एक वरिष्ठ नेता और सरदार, जो प्रांतीय स्वायत्तता और अधिकारों के बड़े पैरोकार थे। 79 साल की उम्र में भी उन्होंने पाकिस्तानी सेना के खिलाफ़ मोर्चा खोला हुआ था। 26 अगस्त 2006 को एक सैन्य कार्रवाई के दौरान अकबर बुगती की एक गुफा में मौत हो गई। उनकी मृत्यु ने पूरे बलूचिस्तान में गहरे आक्रोश को जन्म दिया और चल रहे विद्रोह को और हवा दी। बुगती बलूच संघर्ष के ऐसे प्रतीक हैं जिन्हें आज भी एक शहीद की तरह याद किया जाता है। उनके पोते ब्रहमदाग़ बुगती भी बलूच अधिकारों के लिए आवाज़ उठा रहे हैं और वर्तमान में स्विट्ज़रलैंड में निर्वासन का जीवन बिता रहे हैं।

हिरबयार मरी – मशहूर बलूच राष्ट्रवादी नेता और पूर्व सांसद, जो 2000 के दशक से लंदन में स्वनिर्वासन में रह रहे हैं। हिरबयार मरी पर प्रतिबंधित बलूचिस्तान लिबरेशन आर्मी (BLA) का नेतृत्व करने का आरोप है। उन्होंने अंतरराष्ट्रीय मंचों पर बलूचिस्तान की आवाज़ उठाई है। पाकिस्तानी हुकूमत उनके खिलाफ़ कई मामले चला चुकी है, लेकिन हिरबयार का कहना है कि बलूचों को अपनी लड़ाई स्वयं लड़नी होगी और वे बाहरी सहायता (यहाँ तक कि भारत से भी) लेने के पक्ष में नहीं हैं।

ब्रहमदाग़ बुगती – नवाब अकबर बुगती के पोते और बलूच रिपब्लिकन पार्टी के नेता, जो अपने दादा की मौत के बाद से आंदोलन को अंतरराष्ट्रीय मंचों पर आगे बढ़ा रहे हैं। ब्रहमदाग़ 2006 के बाद अफ़गानिस्तान होते हुए यूरोप चले गए और 2010 से स्विट्ज़रलैंड में शरण लिए हुए हैं। उन्होंने बलूचों के आत्मनिर्णय के अधिकार की मांग उठाई है।