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Mohini Ekadashi Vrat Katha 2025: व्रत कथा और Big Importance

mohini ekadashi vrat katha 2025

mohini ekadashi vrat katha 2025

मोहिनी अवतार – भगवान विष्णु का मोहिनी रूप, जब वे समुद्र मंथन के समय देवताओं को अमृत पिला रहे हैं। मोहिनी एकादशी विष्णु के इसी मोहिनी अवतार से जुड़ा पवित्र व्रत है। इस दिन भक्तगण भगवान विष्णु की विशेष पूजा-अर्चना कर व्रत रखते हैं और पापों से मुक्ति का साधन मानते हैं। पारंपरिक मान्यता है कि समुद्र मंथन में अमृत के आगमन पर विष्णु ने मोहिनी रूप धारण किया था, इसलिए इस दिन को मोहिनी एकादशी कहा जाता है। Mohini Ekadashi Vrat Katha

मोहिनी एकादशी 2025: तारीख, समय और शुभ मुहूर्त

वर्ष 2025 में मोहिनी एकादशी वैशाख मास की शुक्ल पक्ष की एकादशी है। द्रिक पंचांग के अनुसार यह 8 मई 2025 (गुरुवार) को पड़ रही है। एकादशी कब है? इस वर्ष यह व्रत गुरुवार, 8 मई को रहेगा। पंचांगों के हिसाब से एकादशी तिथि 7 मई की सुबह से प्रारंभ होकर 8 मई की दोपहर तक रहेगी (सही तिथि अवलोकन के लिए स्थानीय पंचांग देखें)। व्रत का पारण (व्रत खोलना) द्वादशी तिथि के दिन सुबह सूर्य उदय के बाद किया जाता है।

हिंदी कैलेंडर के जानकार बताते हैं कि मोहिनी एकादशी परण 9 मई 2025 को सुबह 5:34 बजे से 8:16 बजे तक शुभ है। इन पूजा और व्रत संबंधी शुभ मुहूर्तों का ध्यान रखते हुए वैदिक रीति से ब्रह्ममुहूर्त या दिन ढलने के तुरंत बाद व्रत खोलना शुभ माना जाता है।

मोहिनी एकादशी व्रत के नियम और विधि

एकादशी पर व्रत विधि का उल्लिखित वर्णन बताते हैं कि सोमवार शाम को दातुन करके सूर्योदय से पहले हल्का भोजन करके और धीरे-धीरे भागवत कथा आदि सुनते हुए व्रत रखें। ऐसा करने से न केवल पापों का नाश होता है, बल्कि मन में संयम आता है और जीवन में शांति एवं स्वास्थ्य का विकास होता है।

मोहिनी एकादशी व्रत कथा (mohini ekadashi vrat katha)

मोहिनी एकादशी की कथा वैष्णव धर्मग्रंथों में वर्णित है। एक प्राचीन कथा के अनुसार सरस्वती नदी के तट पर भद्रावती नामक नगर में चंद्रवंशी राजा द्युतिमान राज्य करता था। उसी नगर में धन-धान्य से सम्पन्न वैश्य धनपाल रहते थे। वे विष्णु के महान भक्त थे और नगर में सार्वजनिक कुएं, तालाब, धर्मशालाएँ बनवाकर परोपकार करते थे। धनपाल के पांच पुत्र थे, जिनमें सबसे बड़ा दुष्ट स्वभाव का था। उसका नाम दृष्टबुद्धि था।

दृष्टबुद्धि वेश्याओं और शराब की संगति करता, जुआ खेलता और पितृदत्त धन को व्यर्थ नशा-भोग में उड़ाता था। बड़ों की समझाने-बुझाने पर भी यदि नहीं सुधरा तो धनपाल ने क्रोधित होकर उसे घर से निकाल दिया। घर से निकले नजरबंद पुत्र ने शेष गहने व वस्त्र बेचकर जीवन चलाने की कोशिस की, पर जल्द ही उसका धन भी समाप्त हो गया।

धृष्टबुद्धि को शराबी संगत छोड़ गई और अत्यधिक भूख-प्यास ने सताया। उसने चोरी की ओर रुख किया और नगरवासियों का धन लूटने लगा। एक बार राजा के सैनिकों ने उसे पकड़ लिया, पर पिता का पुत्र जानकर छोड़ दिया। दूसरी बार जब वह गिरफ़्तार हुआ, तो उसे यातनाएँ देकर दंडित कर कारागार में बंद कर दिया गया।

दीर्घ यातना के बाद अंततः उसे राज्य से निष्कासित कर दिया गया। वीरान जंगल में भटकते हुए दृष्टबुद्धि ने चारों और पशु-पक्षियों का बलीदान शुरू कर दिया। वह धनुष-बाण लेकर वन में घूमता और निर्दोष प्राणियों को मार-मारकर जी भरकर खाता और बेचता रहा।

एक दिन वैसाख मास की इस कटु परिस्तिथि में दृष्टबुद्धि भूख से व्याकुल होकर भोजन की खोज में निकला और ऋषि कौण्डिन्य के आश्रम पहुँचा। संयोगवश ऋषि ने अभी-अभी गंगा में स्नान किया था और इनके भीगे हुए वस्त्रों के छींटे दृष्टबुद्धि पर पड़ गए।

प्रकाशमय जल की वे बूँदें उसके पापी मन को झकझोरकर शुद्ध कर गईं। दृष्टबुद्धि ने अपनी भयंकर दशा बताकर मुनि से पूछा, “हे महात्मन्! मैंने इतने पाप किए हैं, अब मेरे दुख-ताप का नाश कैसे होगा?”

कौण्डिन्य मुनि ने प्रेम से उत्तर दिया, “हे पुत्र! शीघ्र ही वैशाख शुक्ल एकादशी आ रही है, जिसे मोहिनी एकादशी कहा जाता है। इस एकादशी का कड़ाई से व्रत कर। इस उपवास करने से तेरे सभी पाप धुल जाएंगे।” मुनि ने इस व्रत करने की विधि विस्तार से बताई।

दृष्टबुद्धि ने समस्त नियमों का पालन करते हुए मोहिनी एकादशी का उपवास रखा। भक्तिभाव से रखे गये इस व्रत के प्रभाव से उसके सभी पाप क्षीण हो गए। अंततः उसने विष्णुलोक (भगवान् विष्णु का धाम) प्राप्त कर अद्भुत उद्धार पाया। इसी कथा से ज्ञात होता है कि मोहिनी एकादशी का व्रत रखने से आत्मा पूरी तरह निर्मल हो जाती है।

mohini ekadashi vrat katha: महत्त्व और लाभ

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मोहिनी एकादशी अत्यंत पुण्यकारी है। जैसा ऋषि वशिष्ठ ने श्रीराम को बताया, “वैशाख शुक्ल पक्ष की इस एकादशी का व्रत करने से मनुष्य के सभी पाप तथा क्लेश नष्ट हो जाते हैं। इस व्रत से मनुष्य मोह के जाल से मुक्त हो जाता है।” महान कथाओं में भी यही संदेश मिलता है कि दृष्टबुद्धि ने इस व्रत द्वारा अपने जीवन के अंधकार से पूर्ण मुक्ति पाई।

शास्त्र बताते हैं कि मोहिनी एकादशी के व्रत से तुलसीकथा-सम्मेलन में भाग लेने मात्र से भी विपुल पुण्य प्राप्त होता है। गणेशीयाताओ के अनुसार एकादशी कथा सुनने-पढ़ने पर सहस्र गायदान के समान पुण्य मिलता है। मुनि कौण्डिन्य ने दृष्टबुद्धि को यह व्रत बताकर उसे मोक्ष का मार्ग दिखाया, इसलिए मोहिनी एकादशी को मोक्षदायी भी माना जाता है।

व्रत के लाभ:

इन सब पुण्यों और लाभों के कारण मोहिनी एकादशी को विशेष महत्व प्राप्त है। भक्त श्रद्धा और संयम से यह व्रत रखकर विष्णु प्रसन्नता अर्जित करते हैं, जिससे जीवन-यात्रा सुखद और मंगलमय बनती है। यही कारण है कि मोहिनी एकादशी ‘एकादशी व्रत कथा’ और ‘एकादशी कब है’ जैसे प्रश्नों में शीर्ष पर आती है – क्योंकि इस दिन का महत्व जागरूक लोगों द्वारा खूब जाना जाता है।

इस प्रकार मोहिनी एकादशी व्रत कथा हमें यह शिक्षा देती है कि सत्संग में रहकर और विष्णु-पूजा में लीन होकर की गई साधना से जीवन के तमाम पाप एवं दुःख दूर हो जाते हैं। मोहिनी एकादशी का व्रत और इसकी कथा विशेष श्रद्धा एवं नियमपूर्वक आजमाएं – इससे भक्ति में दृढ़ता आती है, पापों का नाश होता है और ईश्वर का आशीर्वाद मिलता है।

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