Site icon UpdatesWala

भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था – एक ऐतिहासिक सफर

भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था – Illustration showing India's economic rise with a golden upward arrow and bar graph, labeled "India 4th Largest Economy" against a world map backdrop.

भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था – A modern digital illustration highlighting India’s ascent to the 4th position among the world’s largest economies, featuring a golden arrow symbolizing growth and global impact.

भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था: भारत ने हाल ही में वैश्विक आर्थिक मंच पर एक बड़ी छलांग लगाई है। यह अब दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन गया है, जिसने जापान को पीछे छोड़ दिया है। यह एक ऐसी उपलब्धि है जो कभी एक दूर का सपना लगती थी, लेकिन आज यह भारत के लाखों लोगों की कड़ी मेहनत, महत्वाकांक्षा और सरलता का प्रमाण है।

भारत दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था

अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) की अप्रैल 2025 की ‘वर्ल्ड इकोनॉमिक आउटलुक‘ रिपोर्ट के अनुसार, 2025 में भारत की अनुमानित सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) $4.19 ट्रिलियन है, जो जापान की अनुमानित जीडीपी से थोड़ी अधिक है। नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने इस महत्वपूर्ण बदलाव की पुष्टि की है, यह बताते हुए कि भारत अब अमेरिका, चीन और जर्मनी के बाद चौथे स्थान पर है।

यह केवल एक संख्यात्मक वृद्धि नहीं है, बल्कि यह एक नए और सशक्त भारत की तस्वीर है। यह उपलब्धि दर्शाती है कि देश में उपभोग बढ़ा है और निवेशकों का भरोसा मजबूत हुआ है। भारत दुनिया की सबसे तेजी से बढ़ती प्रमुख अर्थव्यवस्था बना हुआ है, और IMF ने 2025 के लिए 6.2% की आर्थिक वृद्धि दर का अनुमान लगाया है।

यह भारत की बढ़ती भूमिका को दर्शाता है, जो वैश्विक आर्थिक असंतुलन को संतुलित करने में मदद कर रहा है और निवेश, रोजगार सृजन और वैश्विक नेतृत्व की दिशा में महत्वपूर्ण संकेत देता है।

Read Also: Severe Rainfall Alert Today in India: 5 बड़े खतरे, 7 नई राहें – क्या आप तैयार हैं?

जापान की अर्थव्यवस्था पिछले 10 सालों में 1.3% सिकुड़ी है, जबकि भारत ने 100% से अधिक की वृद्धि दर्ज की है। यह बताता है कि विकसित अर्थव्यवस्थाएं स्थिर हो रही हैं या सिकुड़ रही हैं, जबकि भारत जैसी विकासशील अर्थव्यवस्थाएं तेजी से आगे बढ़ रही हैं, जिससे वैश्विक आर्थिक मानचित्र पर एक नया संतुलन बन रहा है। यह वैश्विक व्यापार, निवेश और कूटनीति के लिए नए अवसर पैदा करता है।

दुनिया की शीर्ष अर्थव्यवस्थाओं की 2025 के लिए अनुमानित स्थिति इस प्रकार है:

क्रम संख्या देश का नाम अनुमानित जीडीपी (USD ट्रिलियन में) जीडीपी प्रति व्यक्ति (USD में)
1 संयुक्त राज्य अमेरिका $30.51 $89.11 हजार
2 चीन $19.23 $13.69 हजार
3 जर्मनी $4.74 $55.91 हजार
4 भारत $4.19 $2.88 हजार
5 जापान $4.19 $33.96 हजार

यह तालिका भारत की वर्तमान स्थिति का एक स्पष्ट वैश्विक संदर्भ प्रदान करती है। जीडीपी के साथ प्रति व्यक्ति आय को शामिल करना महत्वपूर्ण है क्योंकि यह भारत की एक प्रमुख चुनौती (कम प्रति व्यक्ति आय) को उजागर करता है, भले ही उसकी समग्र जीडीपी अधिक हो।

आर्थिक विकास की यात्रा: बीते दशक की कहानी

भारत की आर्थिक यात्रा पिछले एक दशक में असाधारण रही है। 2014 में, भारत दुनिया की 10वीं सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था था। 2021 तक, यह 5वें स्थान पर पहुंच गया, और अब, 2025 में, इसने जापान को पीछे छोड़कर 4वां स्थान हासिल कर लिया है। यह प्रभावशाली वृद्धि कोविड-19 महामारी जैसी बड़ी आर्थिक चुनौतियों के बावजूद हुई है, जिसने दुनिया भर की अर्थव्यवस्थाओं को प्रभावित किया था।

भारत ने अपनी आर्थिक ताकत को तेजी से बढ़ाया है। इसे 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने में स्वतंत्रता के बाद लगभग 60 साल लगे थे, लेकिन 2014 में इसने 2 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा पार किया, 2021 में 3 ट्रिलियन डॉलर और अब 2025 में 4 ट्रिलियन डॉलर का आंकड़ा छू लिया है। यह दर्शाता है कि भारत अब लगभग हर डेढ़ साल में एक ट्रिलियन डॉलर की बढ़त हासिल कर रहा है।

पिछले 10 वर्षों में, भारत की नॉमिनल जीडीपी में 100% से अधिक की वृद्धि हुई है, जो 2015 में $2.1 ट्रिलियन से बढ़कर 2025 में $4.2 ट्रिलियन हो गई है। दुनिया की शीर्ष 10 अर्थव्यवस्थाओं में, भारत ने जीडीपी में सबसे अधिक वृद्धि दिखाई है। इसकी तुलना में, इसी अवधि में अमेरिका में 65.8%, चीन में 75.8% और जर्मनी में 43.7% की वृद्धि हुई है। भारत की आर्थिक वृद्धि कई कारकों के एक साथ आने का परिणाम है, जिसमें कृषि का लचीलापन, उद्योगों का विस्तार और वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकरण शामिल है।

इस उल्लेखनीय प्रगति की जड़ें 1991 के आर्थिक सुधारों में भी निहित हैं। उस समय, भारत ने आर्थिक उदारीकरण की शुरुआत की, जिसका उद्देश्य अर्थव्यवस्था को सरकारी नियंत्रण से मुक्त करना और बाजार की शक्तियों को अधिक भूमिका निभाने की अनुमति देना था। इन सुधारों में ‘लाइसेंस राज’ का उन्मूलन, विदेशी निवेश पर प्रतिबंधों में कमी, वित्तीय क्षेत्र में सुधार और व्यापार उदारीकरण जैसे महत्वपूर्ण कदम शामिल थे।

इन परिवर्तनों के कारण जीडीपी विकास दर में तेजी आई, जो पहले लगभग 3-4% प्रति वर्ष थी, लेकिन बाद के दशकों में अक्सर 6-7% से अधिक हो गई। उदारीकरण ने विदेशी निवेश को आकर्षित किया, व्यापार करने में आसानी बढ़ाई और अर्थव्यवस्था के विभिन्न क्षेत्रों को प्रोत्साहित किया, जिससे समग्र विकास हुआ।

भारत की आर्थिक वृद्धि की गति में तेजी आना, विशेष रूप से पहले 60 साल में 1 ट्रिलियन डॉलर तक पहुंचने और अब हर 1.5 साल में 1 ट्रिलियन डॉलर जोड़ने की क्षमता, यह बताती है कि 1991 के सुधारों और हाल की नीतियों का संचयी प्रभाव अब एक त्वरित चरण में पहुंच गया है। यह केवल संख्यात्मक वृद्धि नहीं है, बल्कि एक संरचनात्मक परिवर्तन है जो अर्थव्यवस्था को अधिक गतिशील और कुशल बना रहा है, जिससे भविष्य में और भी तेज वृद्धि की संभावना है।

यह दर्शाता है कि भारत की आर्थिक नीतियां, विशेष रूप से 1991 के बाद से शुरू हुए उदारीकरण और हाल के वर्षों में डिजिटल और विनिर्माण पर ध्यान केंद्रित करने वाली नीतियां, एक मजबूत आधार तैयार कर रही हैं। यह आधार अब एक ऐसे चरण में प्रवेश कर गया है, जहां आर्थिक वृद्धि की गति लगातार बढ़ रही है। यह केवल एक संख्यात्मक उपलब्धि नहीं है, बल्कि अर्थव्यवस्था के मूलभूत ढांचे में एक सकारात्मक और स्थायी परिवर्तन है, जो भविष्य की वृद्धि के लिए एक मजबूत संकेत है।

विकास के मुख्य स्तंभ: किन कारणों से मिली यह गति?

भारत की आर्थिक प्रगति कई मजबूत स्तंभों पर टिकी है, जिन्होंने इसे यह गति प्रदान की है। ये स्तंभ एक-दूसरे को मजबूत करते हुए देश को आगे बढ़ा रहे हैं।

डिजिटल क्रांति और वित्तीय समावेशन

भारत में एक नाटकीय डिजिटल परिवर्तन हुआ है, जिसने ‘इंडिया स्टैक’ जैसे डिजिटल बुनियादी ढांचे के माध्यम से लाखों लोगों को सशक्त बनाया है। यह ढांचा डेटा, पहचान और भुगतान को लोकतांत्रिक बना रहा है, जिससे आर्थिक विकास को बढ़ावा मिल रहा है। यूनिफाइड पेमेंट्स इंटरफेस (UPI) डिजिटल भुगतान में एक वैश्विक मानक बन गया है। यह वित्तीय समावेशन और पारदर्शिता को बढ़ावा देता है, और प्रधानमंत्री मोदी ने इसे एक ‘चमत्कार’ बताया है।

डिजिटल अर्थव्यवस्था ने 2022-23 में सकल घरेलू उत्पाद का 11.74% योगदान दिया। जनवरी 2025 में UPI लेनदेन रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गए, जिसमें 16.99 बिलियन से अधिक लेनदेन और ₹23.48 लाख करोड़ मूल्य शामिल थे। इसके अलावा, ई-हॉस्पिटल और ई-संजीवनी जैसी पहल ने स्वास्थ्य सेवाओं को अधिक सुलभ बनाया है, और ई-नाम (नेशनल एग्रीकल्चर मार्केट) किसानों को उनकी उपज का पारदर्शी मूल्य दिलाने में मदद करता है।

‘मेक इन इंडिया’ और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं

‘मेक इन इंडिया’ पहल और उत्पादन से जुड़ी प्रोत्साहन (PLI) योजनाएं भारत को एक प्रमुख वैश्विक विनिर्माण केंद्र बनाने के लिए महत्वपूर्ण हैं। ये नवाचार, दक्षता और प्रतिस्पर्धात्मकता को बढ़ावा देती हैं। PLI योजनाओं के तहत 14 प्रमुख क्षेत्रों में 764 आवेदन स्वीकृत किए गए हैं, जिससे ₹1.61 लाख करोड़ का निवेश, ₹14 लाख करोड़ का उत्पादन और ₹5.31 लाख करोड़ का निर्यात हुआ है, साथ ही 11.5 लाख रोजगार भी पैदा हुए हैं।

इलेक्ट्रॉनिक्स विनिर्माण क्षेत्र, विशेष रूप से मोबाइल फोन, पहले एक शुद्ध आयातक था, लेकिन अब यह शुद्ध निर्यातक बन गया है। ऑटोमोबाइल क्षेत्र भारत के सकल घरेलू उत्पाद में लगभग 6% का योगदान देता है, और ‘मेक इन इंडिया’ ने घरेलू कार उत्पादन और इलेक्ट्रिक वाहन (EV) विनिर्माण को बढ़ावा दिया है।

सेवा क्षेत्र का बढ़ता योगदान

सेवा क्षेत्र भारत के सकल मूल्य वर्धन (GVA) में 50% से अधिक का योगदान देता है, और 2047 तक इसका योगदान 56% तक बढ़ने का अनुमान है। भारत वैश्विक सेवा निर्यात में 7वें स्थान पर है और विकासशील अर्थव्यवस्थाओं में दूसरे स्थान पर है, जिसकी वैश्विक निर्यात में 4.3% हिस्सेदारी है। आईटी और बीपीओ (बिजनेस प्रोसेस आउटसोर्सिंग) सेवाएं बाजार 2025-2029 तक $214.8 बिलियन बढ़ने का अनुमान है, जो 12.3% की चक्रवृद्धि वार्षिक वृद्धि दर (CAGR) से बढ़ रहा है। भारतीय आईटी कंपनियां जैसे इंफोसिस, टीसीएस और विप्रो विश्व स्तर पर विस्तार कर रही हैं, जिससे भारत सॉफ्टवेयर सेवाओं और आउटसोर्सिंग का एक वैश्विक केंद्र बन गया है।

बुनियादी ढांचे में निवेश

सरकार सड़कों, हवाई अड्डों, बंदरगाहों और मेट्रो लाइनों जैसे बुनियादी ढांचे के निर्माण पर भारी खर्च कर रही है। यह निवेश और बढ़ सकता है, जिससे ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कनेक्टिविटी बेहतर होगी। बुनियादी ढांचे का विकास अर्थव्यवस्था की दक्षता और जीवन स्तर में सुधार करता है। पब्लिक-प्राइवेट पार्टनरशिप (PPP) ने बुनियादी ढांचे को बढ़ावा देने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है।

कृषि क्षेत्र का लचीलापन

कृषि क्षेत्र पिछले दशक में लचीला रहा है, जिसने उत्पादन को बनाए रखा है और ग्रामीण आय को स्थिर किया है। 2024-25 में खाद्यान्न उत्पादन 330.9 मिलियन टन होने का अनुमान है, जो पिछले साल की तुलना में 4.8% अधिक है। भारत की अर्थव्यवस्था में कृषि का महत्वपूर्ण स्थान है, जहां लगभग 50% लोग इस पर निर्भर हैं।

डिजिटल क्रांति, ‘मेक इन इंडिया’ और सेवा क्षेत्र का विकास एक साथ मिलकर भारत की अर्थव्यवस्था को एक बहु-क्षेत्रीय विकास मॉडल की ओर ले जा रहे हैं। यह केवल एक या दो क्षेत्रों पर निर्भरता को कम करता है और अर्थव्यवस्था को बाहरी झटकों के प्रति अधिक लचीला बनाता है, जिससे सतत और समावेशी विकास की नींव मजबूत होती है। ये तीनों स्तंभ (डिजिटल, विनिर्माण, सेवा) अलग-अलग काम नहीं कर रहे हैं, बल्कि एक-दूसरे को मजबूत कर रहे हैं। डिजिटल समाधान विनिर्माण और सेवाओं को अधिक कुशल बनाते हैं, जबकि विनिर्माण और सेवाओं में वृद्धि डिजिटल अपनाने को बढ़ावा देती है।

यह एक “बहु-क्षेत्रीय विकास मॉडल” का निर्माण करता है, जो अर्थव्यवस्था को केवल एक क्षेत्र पर निर्भर रहने के बजाय विविध स्रोतों से शक्ति प्राप्त करने में मदद करता है। यह मॉडल बाहरी आर्थिक झटकों के प्रति अधिक लचीलापन प्रदान करता है और समावेशी विकास के लिए अधिक अवसर पैदा करता है, क्योंकि यह विभिन्न कौशल सेट वाले लोगों के लिए रोजगार के अवसर खोलता है।

आम आदमी पर असर: क्या बदल रहा है जीवन?

भारत की अर्थव्यवस्था का दुनिया की चौथी सबसे बड़ी शक्ति बनना, आम आदमी के जीवन पर कई तरह से असर डालेगा। यह बदलाव सिर्फ आंकड़ों तक सीमित नहीं है, बल्कि इसका सीधा संबंध लोगों की रोजमर्रा की जिंदगी से है।

रोजगार के अवसरों में वृद्धि

4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने के साथ, भारत में सेवा, प्रौद्योगिकी और विनिर्माण क्षेत्रों में निवेश बढ़ने की उम्मीद है। ‘मेक इन इंडिया’ और PLI जैसी योजनाएं पहले ही 11.5 लाख से अधिक रोजगार पैदा कर चुकी हैं। यह उम्मीद की जाती है कि इन क्षेत्रों में बढ़ता निवेश नई नौकरियां पैदा करेगा और बेरोजगारी की समस्या को कम करने में मदद करेगा। हालांकि, यह भी सच है कि बेरोजगारी अभी भी एक चुनौती बनी हुई है, खासकर ग्रामीण क्षेत्रों में और युवाओं के लिए, जिस पर निरंतर ध्यान देने की आवश्यकता है।

निवेश में बढ़ोतरी और व्यापारिक माहौल में सुधार

एक मजबूत अर्थव्यवस्था घरेलू और विदेशी, दोनों तरह के निवेश को आकर्षित करती है। विदेशी प्रत्यक्ष निवेश (FDI) में ऐतिहासिक वृद्धि देखी गई है। सरकार व्यापार और औद्योगिक गतिविधियों को प्रोत्साहित करने के लिए सस्ती दर पर ऋण की आसान उपलब्धता पर भी जोर दे रही है। यह सब मिलकर एक ऐसा माहौल बनाता है जहां व्यापार करना आसान होता है और नए उद्यमों को बढ़ने का मौका मिलता है, जिससे अंततः अर्थव्यवस्था को लाभ होता है।

महंगाई पर नियंत्रण और रुपये की मजबूती

विशेषज्ञों का मानना है कि एक मजबूत अर्थव्यवस्था से निर्यात बढ़ता है और आयात पर निर्भरता कम होती है, जिससे महंगाई पर नियंत्रण पाया जा सकता है। फरवरी 2025 में उपभोक्ता मूल्य सूचकांक (CPI) आधारित महंगाई 7 महीने के निचले स्तर 3.6% पर आ गई थी, जो एक सकारात्मक संकेत है। इसके अलावा, राजकोषीय घाटे में भी गिरावट आ रही है, जो अर्थव्यवस्था के लिए एक और सकारात्मक संकेत है और स्थिरता को बढ़ावा देता है।

ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में कनेक्टिविटी और सुविधाओं का विकास

बुनियादी ढांचे में लगातार हो रहा निवेश ग्रामीण और शहरी दोनों क्षेत्रों में कनेक्टिविटी को बेहतर बनाएगा। बेहतर सड़कें, हवाई अड्डे, बंदरगाह और मेट्रो लाइनें लोगों के लिए यात्रा को आसान बनाएंगी और व्यापारिक गतिविधियों को बढ़ावा देंगी। डिजिटल समावेशन से ग्रामीण क्षेत्रों में भी वित्तीय सेवाओं और स्वास्थ्य देखभाल तक पहुंच बढ़ी है, जिससे दूरदराज के इलाकों में भी जीवन स्तर में सुधार हो रहा है।

जबकि कुल जीडीपी वृद्धि रोजगार सृजन और महंगाई नियंत्रण के लिए आशाजनक है, प्रति व्यक्ति आय में कमी और आय असमानता की चुनौती दर्शाती है कि आर्थिक विकास का लाभ समान रूप से वितरित नहीं हो रहा है। यह नीति निर्माताओं के लिए एक महत्वपूर्ण संकेत है कि उन्हें केवल जीडीपी वृद्धि पर ध्यान केंद्रित करने के बजाय, समावेशी विकास सुनिश्चित करने के लिए लक्षित नीतियों पर अधिक जोर देना होगा। यह विरोधाभास दर्शाता है कि भले ही भारत एक बड़ी अर्थव्यवस्था बन रहा है, आर्थिक विकास का लाभ सभी तबकों तक समान रूप से नहीं पहुंच रहा है।

Read Also: मोदी 3.0: 1 साल बाद सरकार के Big फैसले और उनका असर

यह एक महत्वपूर्ण बात है कि “आम आदमी” पर सकारात्मक प्रभाव तभी पूरी तरह से महसूस होगा जब प्रति व्यक्ति आय बढ़ेगी और आय असमानता कम होगी। यह सरकार के लिए एक स्पष्ट नीतिगत निर्देश है कि उसे केवल जीडीपी संख्या पर नहीं, बल्कि समावेशी विकास, कौशल विकास, ग्रामीण विकास और सामाजिक सुरक्षा कार्यक्रमों पर अधिक ध्यान देना होगा ताकि यह सुनिश्चित हो सके कि आर्थिक प्रगति का लाभ हर नागरिक को मिले।

चुनौतियाँ और आगे का रास्ता: समावेशी विकास की दिशा में

भारत की आर्थिक प्रगति प्रभावशाली है, लेकिन इस यात्रा में कुछ महत्वपूर्ण चुनौतियाँ भी हैं जिन्हें संबोधित करना आवश्यक है ताकि विकास समावेशी और टिकाऊ हो।

प्रति व्यक्ति आय में सुधार की आवश्यकता

भारत की कुल जीडीपी भले ही बढ़ रही हो, लेकिन प्रति व्यक्ति आय अभी भी काफी कम है, जो लगभग $2,880 है। यह शीर्ष जीडीपी वाले देशों की तुलना में बहुत कम है, जहां प्रति व्यक्ति आय $14,005 से अधिक है। आनंद महिंद्रा जैसे उद्योगपतियों ने भी इस बात पर जोर दिया है कि भारत का अगला लक्ष्य प्रति व्यक्ति जीडीपी बढ़ाना होना चाहिए। ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य 2047 तक प्रति व्यक्ति आय को उच्च आय वाले देशों के बराबर लाना है।

आय असमानता और बेरोजगारी

आर्थिक विकास के बावजूद, भारत में गरीबी और आय असमानता एक बड़ी चुनौती बनी हुई है। धन का एक बड़ा हिस्सा कुछ व्यक्तियों और परिवारों के हाथों में केंद्रित है, जबकि आबादी का एक बड़ा हिस्सा अभी भी सीमित संसाधनों के साथ संघर्ष कर रहा है। अनौपचारिक क्षेत्र में काम करने वाले श्रमिकों को अक्सर कम मजदूरी और सामाजिक सुरक्षा का अभाव झेलना पड़ता है।

इसके अलावा, नौकरियां श्रम बल के साथ तालमेल नहीं बिठा पाई हैं, जिससे बेरोजगारी और अल्प-रोजगार की समस्या बनी हुई है, खासकर युवाओं के लिए। शिक्षा और कौशल विकास तक अपर्याप्त पहुंच भी एक चुनौती है, जो युवा आबादी को आधुनिक अर्थव्यवस्था में अवसरों का लाभ उठाने से रोकती है।

कृषि क्षेत्र की स्थिरता

कृषि क्षेत्र में जीडीपी वृद्धि के बावजूद समान प्रगति नहीं हुई है, और यह अभी भी मानसून पर अत्यधिक निर्भर है, जिससे किसानों की आय में अनिश्चितता बनी रहती है। किसानों को कर्ज, फसलों का सही मूल्य न मिलना और बाजार में प्रतिस्पर्धा जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ता है, जिससे उनके सशक्तिकरण की आवश्यकता महसूस होती है।

वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना करना

वैश्विक व्यापार तनाव और अनिश्चितता ने भारत की अनुमानित वृद्धि दर को थोड़ा कम किया है। वैश्विक स्तर पर संरक्षणवादी नीतियों के चलते आर्थिक वृद्धि पर असर हो सकता है। भारत को वैश्विक आपूर्ति श्रृंखलाओं में एकीकरण के लिए एक रणनीतिक दृष्टिकोण की आवश्यकता है ताकि वह इन चुनौतियों का सामना कर सके और वैश्विक व्यापार में अपनी स्थिति मजबूत कर सके। हालांकि, भारत का बढ़ता विदेशी मुद्रा भंडार और स्थिर वित्तीय क्षेत्र बाहरी झटकों के खिलाफ एक बफर प्रदान करते हैं, जो देश को वैश्विक अनिश्चितताओं से निपटने में मदद करते हैं।

ये चुनौतियां इस बात पर प्रकाश डालती हैं कि भारत एक संक्रमणकालीन चरण में है। एक तरफ, यह एक बड़ी आर्थिक शक्ति बन रहा है, लेकिन दूसरी तरफ, यह अभी भी विकासशील देश की कई सामाजिक-आर्थिक समस्याओं से जूझ रहा है। यह दर्शाता है कि “विकसित भारत” बनने का मार्ग केवल आर्थिक विस्तार का नहीं है, बल्कि यह सुनिश्चित करने का भी है कि यह विकास समावेशी, न्यायसंगत और टिकाऊ हो। यदि इन चुनौतियों का समाधान नहीं किया जाता है, तो आर्थिक वृद्धि के बावजूद सामाजिक अशांति और अस्थिरता का जोखिम बना रहेगा, जिससे दीर्घकालिक विकास बाधित हो सकता है।

भविष्य की ओर: ‘विकसित भारत’ का लक्ष्य

भारत की 4 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था बनने की उपलब्धि एक महत्वपूर्ण मील का पत्थर है, लेकिन यह केवल एक बड़े लक्ष्य की दिशा में एक कदम है: ‘विकसित भारत’ का निर्माण।

तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने का लक्ष्य

नीति आयोग के सीईओ बी.वी.आर. सुब्रह्मण्यम ने स्पष्ट रूप से कहा है कि यदि भारत अपनी वर्तमान नीतियों और योजनाओं पर कायम रहता है, तो अगले 2.5 से 3 वर्षों में वह जर्मनी को पीछे छोड़कर दुनिया की तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बन जाएगा। अंतर्राष्ट्रीय मुद्रा कोष (IMF) ने भी अनुमान लगाया है कि भारत 2030 तक तीसरी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनने की राह पर है। यह लक्ष्य भारत की बढ़ती आर्थिक शक्ति और वैश्विक मंच पर इसकी बढ़ती भूमिका को दर्शाता है।

2047 तक ‘विकसित भारत’ का दृष्टिकोण

‘विकसित भारत @ 2047’ का दृष्टिकोण भारत को एक विकसित राष्ट्र बनाना है। इसका अर्थ है एक $30 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था और उच्च आय वाले देशों के बराबर प्रति व्यक्ति आय। यह लक्ष्य केवल आर्थिक मजबूती तक सीमित नहीं है, बल्कि इसमें कम बेरोजगारी, उच्च गुणवत्ता वाली शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की उपलब्धता भी शामिल है।

यह एक व्यापक राष्ट्रीय दृष्टिकोण है जो आर्थिक शक्ति को सामाजिक विकास और नागरिक सशक्तिकरण के साथ जोड़ता है। यह दर्शाता है कि भारत की दीर्घकालिक रणनीति केवल जीडीपी बढ़ाने तक सीमित नहीं है, बल्कि एक समग्र और टिकाऊ विकास मॉडल बनाने की है जो मानव विकास संकेतकों में सुधार और वैश्विक नेतृत्व की भूमिका निभाने पर भी केंद्रित है।

यह लक्ष्य प्राप्त करने के लिए महत्वपूर्ण आर्थिक, प्रशासनिक और सामाजिक कदम उठाने होंगे। सड़कों और रेलवे जैसे बुनियादी ढांचे का विकास, प्राकृतिक संसाधनों का इष्टतम उपयोग, अनुसंधान और विकास में निवेश, और मानव पूंजी का विकास महत्वपूर्ण कारक हैं जो इस यात्रा में सहायक होंगे। विनिर्माण क्षेत्र का सकल घरेलू उत्पाद में योगदान बढ़ाने का लक्ष्य (वर्तमान 16% से 25% तक) भी इस दिशा में महत्वपूर्ण है।

हर नागरिक का योगदान

प्रधानमंत्री मोदी ने कहा है कि ‘विकसित भारत’ के निर्माण में हर नागरिक का दायित्व है कि वह अपनी क्षमता और शक्ति के अनुसार योगदान दे। यह एक सामूहिक मिशन है जिसमें निजी क्षेत्र, सरकार और नागरिक समाज के बीच बहु-हितधारक सहयोग की आवश्यकता है। हर व्यक्ति का छोटा से छोटा योगदान भी इस बड़े राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगा।

यह बताता है कि भारत की आर्थिक प्रगति केवल एक संख्यात्मक दौड़ नहीं है, बल्कि एक गहरी, रणनीतिक दृष्टि का हिस्सा है। “विकसित भारत” का लक्ष्य केवल जीडीपी के आकार को बढ़ाना नहीं है, बल्कि एक ऐसी अर्थव्यवस्था का निर्माण करना है जो अपने नागरिकों के लिए उच्च जीवन स्तर, बेहतर शिक्षा और स्वास्थ्य सेवाएँ, और समान अवसर प्रदान करती है। यह एक “समग्र विकास मॉडल” की ओर बदलाव है, जहां आर्थिक शक्ति को सामाजिक और मानव विकास के साथ जोड़ा जाता है।

यह भारत को वैश्विक मंच पर एक जिम्मेदार और प्रभावशाली नेता के रूप में स्थापित करने की दिशा में एक महत्वपूर्ण कदम है, जो केवल आर्थिक ताकत से नहीं, बल्कि अपने लोगों की समृद्धि और स्थिरता से परिभाषित होता है।

 

भारत का दुनिया की चौथी सबसे बड़ी अर्थव्यवस्था बनना एक ऐतिहासिक उपलब्धि है, जो देश की दशकों की आर्थिक यात्रा और हाल के वर्षों में किए गए ठोस प्रयासों का परिणाम है। यह सिर्फ एक संख्यात्मक मील का पत्थर नहीं है, बल्कि यह भारत की बढ़ती वैश्विक आर्थिक शक्ति और उसके भविष्य की संभावनाओं का एक स्पष्ट संकेत है।

डिजिटल क्रांति, विनिर्माण क्षेत्र में ‘मेक इन इंडिया’ और PLI योजनाओं का प्रभाव, और सेवा क्षेत्र का लगातार बढ़ता योगदान इस प्रगति के प्रमुख चालक रहे हैं। इन स्तंभों ने मिलकर एक बहु-क्षेत्रीय विकास मॉडल तैयार किया है, जो अर्थव्यवस्था को बाहरी झटकों के प्रति अधिक लचीला बनाता है।

हालांकि, यह भी समझना महत्वपूर्ण है कि इस उपलब्धि के साथ कुछ चुनौतियाँ भी जुड़ी हैं। प्रति व्यक्ति आय में सुधार, आय असमानता को कम करना, और रोजगार के अधिक समावेशी अवसर पैदा करना अभी भी महत्वपूर्ण लक्ष्य हैं। कृषि क्षेत्र की स्थिरता और वैश्विक आर्थिक अनिश्चितताओं का सामना करने की क्षमता भी देश के लिए महत्वपूर्ण बनी हुई है। इन चुनौतियों का समाधान सुनिश्चित करेगा कि आर्थिक विकास का लाभ समाज के हर वर्ग तक पहुंचे।

‘विकसित भारत @ 2047’ का लक्ष्य, जिसमें $30 ट्रिलियन की अर्थव्यवस्था और उच्च प्रति व्यक्ति आय शामिल है, एक महत्वाकांक्षी लेकिन प्राप्त करने योग्य दृष्टिकोण है। यह लक्ष्य केवल आर्थिक विस्तार पर नहीं, बल्कि एक समग्र और टिकाऊ विकास मॉडल पर केंद्रित है जो मानव विकास और सामाजिक समानता को प्राथमिकता देता है।

इस राष्ट्रीय लक्ष्य को प्राप्त करने में सरकार, निजी क्षेत्र और प्रत्येक नागरिक का सामूहिक योगदान आवश्यक होगा। भारत की यह यात्रा न केवल उसकी अपनी समृद्धि के लिए महत्वपूर्ण है, बल्कि वैश्विक आर्थिक संतुलन और विकास के लिए भी एक महत्वपूर्ण भूमिका निभाएगी।

Exit mobile version